Ganga ghat, Patna
मम्मी ने फोन
पर घर से निकलने से पहले ही कहा था कि उस रास्ते से मत आना । सन्नाटा
रहता है, सुनसान है ,
ये वो और न जाने क्या-क्या |लेकिन हम
ठहरे शांति पसंद और शॉर्टकट वाले,उसी रास्ते की ओर हो
लिए | एक और कारण है जिसके वजह से मम्मी वहाँ से आने – जाने के लिए मना करती है ,
उसी रास्ते में श्मशान घाट भी आता है | लोगों का पार्थिव शरीर, रोते बिलखते परिजन
, फूलों की महक , उठता धुआं और गहन शांति | शायद मम्मी इस बात से भली भाँती परिचित
है कि ये सब बातें हमे परेशान करती हैं, फिर भी बड़े होने के इस दौर में हमे
जिज्ञासा और उत्सुकता दोनों हमशा नई चीज़ें और नई जगहों की ओर ले जाती हैं |
पटना की वो सबसे शांत सड़क,
गंगा की इठलाती लहरें , और लगभग १०
किलोमीटर का वो लंबा सफर और इन सब के बीच श्मशानघाट |
लेकिन इस बार हमने कुछ ऐसा देखा जिसने हमे सोचने पर मजबूर कर दिया , घाट के ठीक बाहर की दिवार पर एक ऐसा विज्ञापन था जो हम सब को जाने-अनजाने में ही सही बहुत कुछ
सिखा रहा था | या फिर ऐसा भी हो सकता है कि किसी ने उस विज्ञापन को जानबूझकर वहाँ लिखा हो |
‘जीवनदाता’ यही वो शब्द है जो उस दीवार पर लिखा था | आप भी चौंक गए ना ? बड़े लाल
रंग क अक्षरों में खूब चमक रहा था यह शब्द |
इंसान जीवन से
लेकर मृत्यु तक का सफर तय करता है | ‘जीवनदाता’ के दिए हुए अनमोल तोहफे का पूर्ण
रूप से उपयोग करता है | रिश्ते निभाता है, दोस्त बनाता है, हँसता है, बोलता
है , दुःख – सुख झेलता है , सपने बुनता है
और ना जाने क्या –क्या करता है | हाँ, और जाने - अनजाने बहुत से लोगों को दुःख और
गीले-शिकवे की वजहें भी दे जाता है | सोचने वाली बात तो यह भी है कि दुनिया में
कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसने गलतियाँ नहीं की या फिर नहीं करेगा , फिर ऐसा
क्यों है कि हम ‘जीवनदाता’ अर्थात कुदरत की दी हुई जिंदगी (जो शायद सिर्फ एक ही हो)
में भी पछतावे और दुश्मनी को एक बड़ा हिस्सा दे देते है | कई बार तो ऐसा भी होता है कि हम लोग खुद को एक ही चक्र में
गोल-गोल घूमते रह जाते हैं और जिंदगी के कई सुन्दर लम्हों को नज़रंदाज़ कर देते हैं
|
“पैसा तो सिर्फ
हाथ का मैल है असली कीमत तो इंसान की होती है |”
“उनके ज़ुबान से
ऐसे शब्द शायद ही कभी किसी ने सुना हो लेकिन जब उन्होंने भरी महफ़िल में ऐसा कहा तो
सब लोग सोचने लगे | जब वो इंसान था तो उसे कोसते रहे और श्रापते रहे ...और आज ऐसा
कह रहे हैं | सिर्फ उनकी अच्छाईया गिना रहे हैं | बोल रहे है उसे हमें अकेला छोडकर
नहीं जाना चाहिए था , लेकिन अब वो नहीं | कितना मानता था वो तुम्हे , तुम्हारे लिए
दुआ करता था , रोता था कि कभी तुम आओगे उसे याद करते , गले लगाने | लेकिन तुम आज
पछतावे तले दबे हो, क्या कर लोगे इसका ? कह रहे हो काश! एक बार भी कहा होता...उसने कहा था हज़ार बार लेकिन तब तुम अहंकार में डूबे थे | अब रोते हो की किसी
ने हाथ नहीं बढ़ाया |” यह बातें भी हमे ऑटो में बैठे हुए याद आ गईं| कुछ दिन पहले
की ही घटना थी| आज मन ही मन सब कुछ कह रहे हैं लेकिन उस दिन हम उठकर चले गए थे |
हमारी मंजिल भी अब सिर्फ दो मिनट दूर थी | लेकिन
रास्ते में जो कुछ भी देखा उसे सबके साथ बाँटा | आप भी ध्यान रखियेगा क्यूंकि न
जाने ये ‘जीवनदाता’ आपको कब क्या सिखा और दिखा जायें |
~ आशना सिन्हा