काश ! कोई समझ पाता कि ...
कितना मुश्किल था उसके लिए ,
झूठी हंसी का पर्दा अपने चेहरे पर रखना |
कोई तो समझ पाता कि उसके अन्दर का ग़म ,
था कितना गहरा |
काश ! कोई समझ पाता कि....
अकेलेपन की तस्वीर कैसी होती है,
कोई तो सुनता उसके ,
अनकहे शब्दों कि कहानी |
काश ! कोई सोच पाता कि ...
वो भी किसी राह पर अपने क़दमों क निशां ,
छोड़ रही है |
लकिन कोई यह सोचता भी कैसे कि,
काटों पे क़दमों के निशान कैसे दीखते होंगे |
कोई तो ये सोच लेता कि निशां उसके,
लहू के सबूत के साथ होंगे |
काश ! कोई तो जानने कि कोशिश करता,
मन की बात उसकी |
वो हजारो सपनो वाली दुनिया भी घूम आता,
साथ उसके कोई |
कोई तो देता उसका साथ उसको,
कुछ और लम्हों के लिए |
काश ! किसी की तो होती तलाश पूरी ,
उस अधूरी ज़िन्दगी को पाकर |
काश ! कोई समझ पाता कि...
कैसा लगता है उसे अकेले होते हुए भी ,
पूरा संसार जीकर |
अजीब नज़रों से उसे जब भी देखता है कोई ,
सैकड़ो सवालों से घिर जाती है वो |
काश ! उसकी नई सोच को ,
अपना लेता हर कोई आसानी से ,
तो न लड़ना पड़ता उसे हर पल ,
इस दुनिया कि नादानी से |
जब भी उसके कदम घर कि देहलीज़ को पार करते हैं ,
रूढ़ियों की कुछ बेड़ियाँ उसे जकड लेती हैं |
मीरा-राधा कि दुहाई तो सब देते है ,
लेकिन उसके प्रेम को सब अपने सम्मान से जोड़ देते हैं |
चुप्पी को तोड़ देना चाहती है वो ,
लेकिन उसका शोर इस भीड़ में खो जाता है कहीं |
अपमान ही उसके जीना का आधार भी है,
और ज़िन्दगी कि मजबूरी भी |
ग़ुलामों के लिए तो कोई कानून भी नही,
हर अत्याचार है हमेशा उनपर सही |
स्त्री ऋण का सौदा तो अब ,
यहाँ हर बाज़ार में होता है |
लेकिन लक्ष्मी को कोख कि तिजोरी ,
में रखना भी पाप समझा जाता है |
काशी ! अब तो हमें हमारे हिस्से का हक उन्हें देदो,
उन्हें भी कुछ साँसे चैन से लेने दो |
गुज़र गया वो कल जब उन्हें ,
सिर्फ घर कि एक चीज़ के सामान समझा जाता था |
अपना लो इस शाश्वत सच को कि .....
वो अपनी हस्ती खुद बना सकती है |
पिंजड़े में कैद चिड़िया को अब उड़ जाने दो ,
उसे भी अपने पर आकाश में फ़ैलाने दो |
इस जमीं को भी अब ख़ुशी और सुकून से
अपनी दूसरी संतान को अपनाने लेने दो |