मै मसखरा
चले गए सब हँस कर मुझ पर ,
पर मै अन्दर ही अन्दर रोता रहा |
जाग गई ये दुनिया लेकिन,
मै अबतक यूँ ही सोता रहा |
हँसना तो सीख लिया खुद पर ,
पर सीखी नही दुनियादारी |
जो जान लिया होता दुनिया से मैंने लड़ना ,
न होता मै आज इस चौराहे पर खड़ा |
हाँ , मै पगला , मै बेवकूफ मसखरा |
कोई न अपना मुझे इस जग से मिला ,
खून के रिश्तों से जो मैंने किया गिला |
धोखा दे कर दिल को सब ने सैकड़ो बार तोड़ा,
हर बार वो शीशा मेरे अपनों ने ही जोड़ा |
ढक लिया यह चेहरा अपना ,
रंगों की आड़ लेकर |
न जाना मैंने कितनी खुशियाँ ब्याज में मिलती हैं ,
थोड़ा उधार देकर |
हाँ , मै नासमझ , मै नादान मसखरा |
बीत चूका था जीवन आधा,
जब जाना लोगों का सच |
जी लूं खुद अपने लिए भी ,
जो चंद लम्हे बच गये है अब |
कितने करतब सीखे मैंने ,
और सीखी कई कलाकारी |
पर परखना भूल गया मै ,
खुद से मेरी इमानदारी |
हाँ , मै अड़ियल , मै जिद्दी मसखरा |
सच - झूठ न जाना कभी ,
न जाना वादों का खेल |
हरदम सब ने यही चढ़ाया ,
न जग में मेरा कोई मेल |
जीना जो सीखा गम में ,
सीख लिया जीना कम में |
लेकिन हिम्मत अभी भी बाकी है जेहन में ,
क्योंकि साथ है उसका मेरा हर नमन में |
हाँ , मै मानुषिक , मै निष्कलंक मसखरा |
देखूं जो मै दुनिया इन नजरो से ,
जीवन की खुशबू है अपनों के गजरे से |
तरसूं न अब मै खुशियों के लिए,
सबक जो मैंने अपनी हर गलती से लिए |
बोध हुआ जब अपने अचेत मन से ,
मेरी उंचाई अब होगी परे गगन से |
सब का मै और मेरे सब ,
नही गम मै झेलूँगा अब |
हाँ , मै सुपरिचित ज्ञानी , मै अत्युत्तम मसखरा |