Wednesday 15 June 2011

मै मसखरा


मै मसखरा 






चले गए सब हँस कर मुझ पर ,
पर मै अन्दर ही अन्दर रोता रहा |
जाग गई  ये दुनिया लेकिन,
मै अबतक यूँ ही सोता रहा |

हँसना तो सीख लिया खुद पर ,
पर सीखी नही दुनियादारी |
जो जान लिया होता दुनिया से मैंने लड़ना  ,
न होता मै आज इस चौराहे पर खड़ा |

हाँ , मै पगला , मै बेवकूफ मसखरा |
 
कोई न अपना मुझे इस जग से मिला ,
खून के  रिश्तों से जो मैंने किया गिला |
धोखा दे कर दिल को सब ने सैकड़ो बार तोड़ा,
हर बार वो शीशा मेरे अपनों ने ही जोड़ा |

ढक लिया यह चेहरा अपना ,
रंगों की आड़ लेकर |
न जाना मैंने कितनी खुशियाँ  ब्याज में मिलती हैं ,
थोड़ा  उधार देकर |

हाँ , मै नासमझ , मै नादान मसखरा |

बीत चूका था जीवन आधा,
जब जाना लोगों का सच |
जी लूं खुद अपने लिए भी ,
जो चंद लम्हे बच गये है अब |

कितने करतब सीखे मैंने ,
और सीखी कई कलाकारी |
पर परखना भूल गया मै ,
खुद से मेरी इमानदारी |

हाँ , मै अड़ियल , मै जिद्दी मसखरा |

सच - झूठ न जाना कभी ,
 न जाना वादों का खेल |
हरदम सब ने यही चढ़ाया ,
न जग में मेरा कोई मेल |

जीना जो सीखा गम में ,
सीख लिया जीना कम में |
लेकिन हिम्मत अभी भी बाकी  है जेहन में ,
क्योंकि साथ है उसका मेरा हर नमन में |

हाँ , मै मानुषिक , मै निष्कलंक मसखरा |

देखूं जो मै दुनिया इन  नजरो से ,
जीवन की खुशबू है अपनों के  गजरे से |
तरसूं न अब मै खुशियों के  लिए,
सबक जो  मैंने  अपनी हर गलती से लिए |

बोध हुआ जब अपने अचेत मन से ,
मेरी उंचाई अब होगी परे गगन से |
सब का मै और मेरे सब ,
 नही गम मै झेलूँगा अब |

हाँ , मै सुपरिचित ज्ञानी , मै अत्युत्तम मसखरा |

No comments:

Post a Comment