Wednesday 15 May 2013

गुलमोहर फिर खिल उठे !



              

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ऐसा लग रहा है जैसे एक सदी बीत चुकी है और हम उन रास्तो से फिर से होकर आए हैं| सबकुछ बहुत नया लग रहा था और सुन्दर भी| ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो किसी ने जादू की छड़ी घुमाकर सबकुछ एक दिन में बदल दिया हो| आज रास्ते में एक चीज़ जो सबसे खास लगी वो था गुलमोहर का पेड़ और उसपर लगे शोख लाल फूल, और वो भी सिर्फ एक नही लगभग सौ से भी ज्यादा गुलमोहर के पेड़ दिखे आज| अब वो तो पेड़ थे भरे पूरे पेड़| एकाएक तो नही आ सकते कहीं से, फिर भी ना जाने वो सारे पेड़ कहाँ छिपकर बैठे थे कल तक या फिर शायद बाहरी दुनिया के लिए हम ही अपनी नज़रे बंद करके बैठ गए थे| हाँ, यकीनन हम ही कहीं खो से गए थे, अपनी छोटी सी दुनिया में जिसमे सिर्फ कुछ ही लोग थे, चंद दोस्त, खास रिश्तेदार और कुछ फेसबुक फ्रेंड्स (सभी स्कूल, कॉलेज और पड़ोस के दोस्त, कोई भी अपरिचित नही)| बस इतने ही लोग|

अक्सर हम खुद को अचानक एक ऐसे जगह पाते हैं जहाँ स बाहर जाने का कोई रास्ता ही नही मिलता| छोटी सी दुनिया संकोची और घुटन भरी लगने लगती है| लोगों की दोस्ती झूटी और बेमानी, कुछ रिश्ते बोझ, कुछ गलतियाँ पछतावा कुछ जिम्मेदारियाँ थोपी हुई और हम खुद एक बेचारे पीड़ित की जिंदगी जीने लगते हैं| यही सबकुछ हमारे साथ हुआ| बाहर का रास्ता ढूँढना ज़रुरी बन गया ओर वो रिश्ते निभाना मजबूरी| लोगों को गलतियों और जानबूझकर की गयी बदमाशियों को हमलोग माफ करते जाते हैं और वो हमे हल्के में लेना शुरू कर देते हैं| वैसे यह कहना भी बुरा होगा की सभी तुच्छ किस्म के है, ऐसा नहीं है अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोग है हमारे दुनिया में लेकिन वो अलग बात है की अब बुरे लोगों की संख्या कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी है|

चलिए फिर से बात करते है गुलमोहर की.... बचपन में हमारे घर के आगे भी एक गुलमोहर का पेड़ हुआ करता था| एक तरफ पीले फूलों वाला पेड़ जिसका नाम हम आज तक नहीं जान पाए और दूजी तरफ गुलमोहर| पता नहीं लोगों ने उस पेड़ को क्यूँ काट दिया| स्कूल के रास्ते में भी सैकड़ों गुलमोहर के पेड़ आते थे। उन्हें भी हाइवे बनाने के लिए काट दिया गया|बचपन में जो कुछ भी बड़े बुजुर्गों से सिखा वो बता रहे हैं| “निंदक नियरे रिखिये आँगन कुटीर छवाए बिन साबुन पानी के सब सून होई जाये” अब ठीक से तो याद नहीं पर शायद कुछ ऐसा ही था कबीर का दोहा| निंदक को अपने पास रखना चाहिए क्यूंकि वो हमे हमारी गलतियाँ और खामियां गिनाकर ‘परफेक्शन’ के ओर ले जाता है| खैर बात तो सही है लेकिन जब कोई निंदक आपके ऊपर हावी होने लगे तो वो कतई सही नही है| ना कहना और कुछ ‘दोस्तों’ से दूरी बना लेना भी इंसान को सीखना चाहिए|

हमे अपने छोटी से दुनिया से बाहर निकलना चाहिए, ठीक उसी तरह जैसे एक ककून तितली बनने से पहले अंदर अपनी छोटी से दुनिया में ही सिमटा रहता है।  और जब उसके पंख आ जाते है तो बगियों में घूमता है| बाहर की दुनिया बेहद खूबसूरत और करिश्माई है| इसने हमारे लिए हजारों तोहफे बिछाकर रखे है शायद उनमे से ही एक हैं ‘गुलमोहर’| वैसे जबसे हमने भी उनलोगों से दूरी बनाई या फिर ये कह लीजिए पीछा छुड़ाया है, मेरे गाल भी सदैव हँसी से खिले रहते है| अबकी बार गर्मी में सिर्फ पेड़ वाले गुलमोहर ही नहीं हमारे चेहरे के भी गुलमोहर खिल उठे| आप सब भी ढूँढिये कुछ ऐसा जिसने आपको परेशान कर रखा हो और कह दीजिए उसे अलविदा, क्या पता शायद आपके भी ‘गुलमोहर खिल उठें’|

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