Wednesday 25 March 2020

'आ कोरोना मुझे मार'- थेथरपन, ढीठता और महामारी

कलकत्ता
२५.०३.२०२०




दुनिया की सफाई पर निकली एक लड़की 


'मूर्खता' स्वयं में एक विशेषता है| 'विशेषता' अर्थात किसी विषय में महारत हासिल करने की कला| 'कला' इसलिए क्यूंकि अंततः सबकुछ कला ही तो है| मेरे हिसाब से इक्कीसवीं सदी में मूर्खता दुर्लभ प्रजाति सामान है| इसिलीये तो 'मूर्ख विशेषज्ञों' की संख्या कम है| आखिर समय किसके पास है मूर्खता को अंजाम देने के लिए? माहौल अत्यंत गंभीर है| कोरोना नमक वैश्विक महामारी ने दुनिया को अपने-अपने कमरों और घरों तक सीमित कर दिया है| पहले रावण और चींटियों से बचने के लिए लक्ष्मण रेखा खींचा जाता था, और अब कोरोना से बचने के लिए|

अभी जिस 'मूर्ख विशेषज्ञ' की संज्ञा से हम आपको परिचय करवाए, उनकी बात करते हैं| कुछ 'मूर्ख विशेषज्ञ' अभी भी जबरन नुक्कड़ों-सड़कों पर खड़े दिखते हैं| 'सोशल डिस्टैन्सिंग' शब्द इनके लिए सोशल मीडिया  तक ही सीमित है| लात-डंडे पड़ जाये लेकिन मजाल है कि ये अपने घरों में इंटर  कर  जाएं| ऊपर से कोरोना कांस्पीरेसी  से लेकर कोरोना का घरेलु उपचार तक सबका ज्ञान है इन विशेषज्ञों के पास| बस घर पर रहने की बात पल्ले नही पड़ती| अतः जिस थेथर और ढीठ के बारे में अक्सर हमें बताया जाता है, वो यही लोग हैं| 

आजकल तो हमको डर लगने लगा है कि कहीं ये 'थेथरपन और ढीठता' को फिलोसॉफिकल आइडियोलॉजी  ना प्रूव  कर दें| एक समान फिलोसॉफी का जन्म यूरोप में भी हो चुका है| खासकर फ्रांस के पेरिस शहर में| सरल शब्दों में डिफाइन  करें तो, कोरोना महामारी के समय थेथरपन और ढीठता दिखाना 'कोरोना रिबेल' की संज्ञा को जन्म देता है| इस संज्ञा के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति (या महाव्यक्ति, जो की ज्यादातर युवा और मिल्लेंनियल  ठहरे), बेझिझक और निडर होकर सड़कों पर घूम रहे हैं; और पार्टियाँ करते फिर रहे हैं| बेबीडॉल वाली दीदी भी मूर्ख-विशेषज्ञ-कलाकार, ओह! आई मीन  'कोरोना रिबेल' है  क्या? या फिर, वो भी 'आई एम नॉट अ रिबेल विथाउट अ कॉज' वाले कबीर भईया जैसी है? भूल गए क्या? वही मिसोगीनिस्ट  (मतलब नारी-द्वेषी) और डोमेस्टिक वायलेंस  से लैस फिल्म वाले| अब कोई मेरे से सहमत हो या न हो, मेरे लिए 'कोरोना रिबेल'' कबीर सिंह के ही केटेगरी वाले ही हैं| दोनों के दोनों थेथर और ढीठ| 

आगे बढ़ते हैं| हम अपने बारे में बताते हैं| हम जहाँ फसें हैं (आइसोलेटेड और लॉक्ड डाउन  पढ़िए) वहां भी युद्ध छिड़ा हुआ है| और इस युद्ध की रिबेल है मेरी बड़ी बहन| एक होता है मुसीबत में फंसना, और दूसरी तरफ होता है उससे भी भयंकर, जिस घर में मियां-बीवी का झगड़ा चल रहा हो उस घर में मुसीबत के वक़्त फंसना| खैर, यहाँ का रिबेलगिरी ज्यादा दिन नहीं चलने वाला; जीजा जी जो कबीर सिंह जैसे नहीं ठहरे| आशा है 'कोरोना रेबिलों' का भी दिमाग जल्द ही खुल जाये| नही तो 'आ कोरोना मुझे मार' सच होते देर नही लगने वाला| वैसे बता दें आपको, रिबेल हम भी कम नहीं, उतर जाएं क्या नीचे? अरे अरे.... हम तो मजाक कर रहे थे! 

रात का २:४७ हो रहा है| आँखों में नींद है और मन में आशा है कि सब ठीक हो जायेगा| रेडियो पर अजीब दास्ताँ है ये बज रहा| दिल अपना और प्रीत पराई वाला| कितना आयरॉनिक है न? 

अपना ख्याल रखियेगा!

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