Tuesday 31 March 2020

घर से निकलते ही..... कुछ दूर चलते ही - कोरोना सम्बंधित पोस्ट


कलकत्ता
३१.०३.२०२०

                                               

उदय चोपड़ा के जीवन में आप सभी का स्वागत है| घर पर रह कर कुछ न करना भी एनर्जी कोन्सुमिंग  हो सकता है, यह तो आपको अभी तक पता चल ही गया होगा| वैसे भी साइकोलॉजिकल फटीग  शब्द शायद ही लोगों की आम शब्दकोष का हिस्सा बना है कभी| ऐसा मालूम होता है जैसे कोरोना वायरस के साथ-साथ नींद का भी कोई वायरस हवा में फ़ैल गया है| दिन और रात में जितना भी सो लो, फिर से आँखें उनींदी हो जा रही|

आज तो सिर्फ १८ सीढ़ियां चढ़कर पड़ोसी के गमले से पुदीना चुराने में थक गए हम| पता नहीं कैसे डेली वेज वर्कर्स और माइग्रेंट वर्कर्स  अर्थात दिहाड़ी और औपनिवेशिक मजदूर देश की राजधानी और महानगरों को छोड़ पैदल घर वापस जाने का फैसला किये होंगे| लगभग सभी मज़दूरों की मंज़िल बिहार और उत्तर प्रदेश थी| वही बिहारऔर उत्तर प्रदेश जहाँ के लोगों पर आधारित गालियां देना कूल  होने का समानार्थक मन जाता है; खासकर हमारी राजधानी दिल्ली में| कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर अब भी वायरल हो रही हैं, लोग सर-हाथों पर सामान लिए कई सौ किलोमीटर चलने को अडिग थे| मेन्टल लेबर  का लोहा तो साल दर साल के कॉम्पिटेटिव एग्जाम  में यू.पी. बिहार वाले दर्शाते हैं ही, चलो अच्छा है लोगों के सामने फिसिकल लेबर  की भी सच्चाई सामने आ गयी| उल्टी गाली पड़ गयी धर्मता के तरफ से गाली देने वाले पर| देर ही सही सरकारी बसें उन्हें लेकर गयीं जहाँ उन्हें जाना था| जहाँ उन्हें जाना था इसलिए लिखे क्यूँकि हम जब भी उनसे सम्बंधित पोस्ट शेयर करते है लोग हमसे पूछते है कि आखिर उनको जाना कहाँ था| अब हम क्या जाने? घर जाना होगा शायद| बूढ़े माँ-बाप के पास खेत जोतने, धान कूंटने, आराम करने, डर से सहमकर छिपने, परिवार से दुःख बाटने, कच्चे जमीन पर चैन से सोने, देह न टूटने का मज़ा लेने, बचाये पैसों से कुछ दिन आराम से जीने| 


अब अपने बारे में बतियाते है थोड़ा| सुनियेगा न? नींद तो नहीं आ रही न? हमारे जैसे लोग जो ज्यादातर समय घर पर बिताते हैं, वो भी आजकल मन ही मन कोरोना को कोसते बाझ नहीं आ रहे| शरीर तो हम सबका फिजिकल वर्क  से बच गया है; लेकिन मेन्टल वर्क  को कैसे रोका जा सकता है? दिन भर कोरोना सम्बंधित समाचार सुनकर दिमाग पर जो ज़ोर पड़ रहा वो साइकोलॉजिकल फटीग  जैसी अवस्था की ओर लिए जा रहा हम सबको| सोशल मीडिया  से लेकर फोन कॉल  तक, सब जगह बस कोरोना ही इम्पोर्टेन्ट टॉपिक बनकर घुस गया है| अब तो बेस्ट फ्रेंड  से भी कोरोना सम्बंधित चुगली होती है, और बॉय फ्रेंड से कोरोना सम्बंधित प्रेम| 

सोशल मीडिया पर मेमे सब भी सड़ गया है| कुछ नया आता ही नहीं| बोर हो गए है फेसबुक और व्हाट्सप्प करते करते| कल रात तो मन उलटी वाला हो गया| ऐसे समय में भी लोग ज़हर उगलने वाला पोस्ट डाल रहे हैं और हंस रहे हैं मजबूरों की मजबूरी पर| अपने प्रिविलेज्ड वर्ल्ड  के बाहर झांकेंगे तब न देख पाएंगे लेबर फोर्स  के पैरों पर पड़े छाले| सिर्फ प्रिविलेज्ड  के बारे में बोलना नाइंसाफ़ी होगीओप्पोरचुनिस्ट्स  के साथ| एक किस्सा सुनाते है| पिछले साल अक्टूबर महीने में हमारे पटना में बाढ़ आया था| हमारा परिवार तीन दिन तक किसी तरह जितना पिने लायक पानी घर में था उससे काम चलाया| आखिरकार निश्चय कर भाई ने तैर कर शिविर से पानी लाने का निर्णय किया| तीन-चार घंटे बाद जब वो आया तो उसकी आँखें लाल (गुस्से में या उदासी में ये तो हम आज तक जानने का कोशिश कर रहे)| हमारा भाई ऐसा अंतर्मुखी है कि अन्तर्मुखियों को भी पछाड़ दे| कई बार पूछने पर उसने बताया की किस तरह वो एक बोतल पानी के लिए घंटो तक लाइन में लगा रहा और जब उसकी बारी आयी तो उसको एक बोतल पानी के साथ पांच अलग अलग लोगों के साथ फोटो खिंचवाने कहा गया| आगे क्या बोले उस दिन एक बैरल  (वही नीला वाला) पानी ५०० रुपये में आया था हमारे घर| वापस आते हैओप्पोरचुनिस्ट्स  पर|  जो लोग पैदल अपने अपने गांव जा रहे. उन्हें रोक कर कुछ लोग एक केला देने के बदले अपने सो कॉल्ड स्टार्टअप्स  का प्रमोशन  कर रहे हैं| लगता है ये ओप्पोरचुनिस्ट्स  रोज भगवान से ऐसे सिचुएशन का ही आशीष मांगते हैं|

आज हम स्पीकर पर घर से निकलते ही.....कुछ दूर चलते ही बजाये है| बचपन वाला क्रश जो था जुगल हंसराज पर| शायद आप अभी अपने घर में बैठे हों, निश्चिन्त होकर| आपको बधाई हो! कुछ का हाल अलग है वो चले थे एक 'घर' से अपने घर जाने के लिए| और उनका घर कुछ दूर चलते ही नहीं आता| 

गुडनाईट!

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